लॉर्ड हेस्टिंग्स: मराठा साम्राज्य के पतन से ब्रिटिश शासन की मजबूती तक की पूरी कहानी पढ़े

ब्रिटिश सत्ता की स्थिति: मराठों के पतन से अंग्रेजों पर होने वाले असर 

भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स का पोर्ट्रेट, जिनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य का अंत हुआ
             

मुख्य चार टॉपिक:

मराठा संघ टूटने के बाद क्या हुआ ?
लॉर्ड हेस्टिंग्स के मुख्य चार सुधार क्या किए?
अंग्रेजों की हुकूमत थी लेकिन असल हकीकत क्या थी ?    
रंगून मणिपुर असम बंगाल पर नजर


                  लॉर्ड हेस्टिंग्स का शासन 1821 में समाप्त हो गया। पहले ऐसा लगा कि जब मराठा संघ को हराने वाले गवर्नर-जनरल भारत से विदाई लेंगे, तो लोग उन्हें सम्मान देंगे, क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक उनके काम से खुश थे और उन्होंने उन्हें 60 हजार पाउंड का इनाम दिया था। लेकिन गंगा उसके उल्ट बहने लगी और उन्हें शर्म से इंडिया से जाना पड़ा।

                  हैदराबाद में एक अंग्रेजी कंपनी डब्ल्यू पाल्मर कंपनी थी। इसके निदेशकों में से एक आदमी हेस्टिंग्स का रिश्तेदार था। इस कंपनी ने निजाम को ऋण के रूप में बड़ी राशि दी और बदले में उसने अपने राज्य का बहुत शोषण किया। 

                  जांच से पता चला कि इस ऋण को देने की अनुमति गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स की तरफ से ही दी गई, जबकि संसद के कानून ने यूरोपीय और भारतीयों के बीच ऐसे लेनदेन को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था।

                  फिर भी ऐसे काम होते थे जिसकी वजह से बोर्ड (पूर्व भारत कंपनी का प्रबंधन) लॉर्ड हेस्टिंग्स से नाराज हो गया और उन्हें इस्तीफा देकर इंग्लैंड भागना पड़ा।

                 उस समय भारत में ब्रिटिश शासकों की स्थिति इतनी कड़काई वाली थी कि हरबड़े गवर्नर-जनरल को शर्मसार होकर इंडिया छोड़ना पड़ता था। कोई भी बक्शा नहीं जाता था। अपने ही देश में इज्जत कम और बेइज्जती ज्यादा थी।

मराठा संघ टूटने के बाद क्या हुआ ?

                   जब लॉर्ड हेस्टिंग्स ने भारत का शासन सर्वोच्च परिषद के सदस्य श्री एडम को सौंप दिया, तो देश की स्थिति बाहर से शांत नजर आ रही थी, लेकिन अंदर कुछ दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी।

                     मराठा संघ टूट गया था, इसकी कमान अंग्रेजों के हाथों में आ चुकी थी, ब्रिटिश झंडा पूना में लहरा रहा था, पेशवा जेल में बंद था, सिंधिया की शक्ति पूरी तरह खत्म हो गई थी, होलकर भी कमजोर हो गए थे, और राजपूत राजा अंग्रेजों की सुरक्षा में आ गए थे।

                    रामेश्वरम से दिल्ली तक ब्रिटिश सेना के शिविर थे, जिससे ऐसा लगता था कि अब ब्रिटिश शासन को हटाना लगभग नाना मुमकिनन लग रहा था। कई बड़ी रियासतों ने अंग्रेजों के साथ आपसी सहयोग के समझौते किए और बाकी रियासतों ने समन्वय को स्वीकार कर लिया। 

                    राजपूताना की रियासतों को नियंत्रित करने के लिए, अजमेर को एक अलग राज्य बनाया गया था, जो सीधे एक ब्रिटिश अधिकारी का राज था।

लॉर्ड हेस्टिंग्स के मुख्य चार सुधार क्या किए?

लॉर्ड हेस्टिंग्स को चार बहुत सक्षम सहायक- माउंट स्टुअर्ट एलफिंस्टन (जो एक इतिहासकार भी थे), सर चार्ल्स मेटकॉफ (दिल्ली के प्रशासक), सर जॉन मैल्कम और सर थॉमस मुनरो मिले। अपनी सहायता से हेस्टिंग्स ने मद्रास और बंगाल में शांति और प्रशासनिक सुधार करवाए।

मराठों के अंतिम युद्ध से क्या तैयारियां की गई?

                     पिंडारियों का उन्मूलन 1818 में पूरा हो गयाथा। मराठों के साथ अंतिम युद्ध से पहले हेस्टिंग्स द्वारा की गई तैयारियों का एक उद्देश्य पिंडारी को पूरा करना था। मराठों और पिंडारियों के खिलाफ युद्ध एक साथ लड़े गए। 

                      मराठा को कड़ी हार हुईं और पिंडारी को दुम दबाकर भागना पड़ा अमीर खान ने अंग्रेजों के सामने झुक गया और चेला बन गया और उन्हें टोंक की रियासत का पुरस्कार मिला, करीम खान ने भी आत्मसमर्पण कर दिया, और चीतू जंगल में भाग गया जहां कहा जाता है कि उसे शेर ने खाया था। बाकी प्रवासी अपने गांव लौट आए और खेती के काम में लग गए।

अंग्रेजों की हुकूमत थी लेकिन असल हकीकत क्या थी ?       

                   ऊपर ऊपर से तो देश के ज्यादातर हिस्सों में शांति थी और ब्रिटिश झंडा हवा में बड़ी ताकत से उड़ रहा था, लेकिन हेस्टिंग्स की व्यक्तिगत डायरी कुछ और ही बयां करती है। 1 फ़रवरी 1814 को उन्होंने लिखा।

                   हममें जो लोगों की कमी है अगर उसको को पूरा करना है तो पड़ोसियों से दोस्ती करनी होगी, अगर हमने उन्हें न्याय और अच्छे व्यवहार से जीत लिया होता। लेकिन मैं इस दोस्ती को कहीं नहीं देखता। 

                    हमारे चारों ओर मुश्किलों के अलावा कुछ नहीं है। छोटी जीत ने हमारे प्रति गहरी दुश्मनी से पराजित लोगों के दिलों को भर दिया है। हमने पड़ोसी राज्यों के साथ अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करके विरोध और साजिश का माहौल बनाया है। 

                   मुझे डर है कि जब भी हमें एक बड़े दुश्मन से लड़ना होगा, तब ये सभी राज्य हमारे खिलाफ एकजुट होंगे। वह समय दूर नहीं है।1857 की क्रांति के 43 साल पहले इन चीजों को लिखा गया था, जिसको देख कर साफ तौर से दिखाता है कि एक अंग्रेज होने के बावजूद, हेस्टिंग्स ने ब्रिटिश शासन की कमजोरियों को समझा और आने वाले तूफान की भविष्यवाणी की।

                    हेस्टिंग्स के इंग्लैंड लौटने के बाद, श्री एडम ने 7 महीने के लिए गवर्नर-जनरल का काम संभाला। फिर 1823 में लॉर्ड एमहर्स्ट ने पद संभाला और अगले साल (1824) उन्होंने बर्मा के साथ युद्ध शुरू किया।

                       युद्ध के लिए बहाना बनाना मुश्किल नहीं था। 1760 में बर्मा में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। की अलोमप्र ने बर्मा पर जीत हासिल हुई और हुकूमत आगई और मणिपुर और असम को अपने राज्य में मिला लिया, जिसके कारण 1818 में बर्मा की सीमा ने बंगाल को छुआ। 

रंगून मणिपुर असम बंगाल पर नजर

                       अंग्रेजों की आंखें असम और मणिपुर पर थीं, इसलिए उन्हें बर्मा के इस विस्तार को पसंद नहीं आया और उन्होंने अपनी नई रणनीति बनानी शुरू करदी।

                       अंग्रेजों ने अपने क्षेत्र में बर्मा के खिलाफलड़ने वालों को शरण दी, जो बर्मा में प्रवेश करके बर्मा पर आक्रमण करते थे। बर्मा ने अंग्रेजों से मांग की कि वे इन शत्रुओं को पकड़लें औरर बर्मा को सौंप दें। 

                         जब अंग्रेजों ने मना करदिया, तो, बर्मा ने कहा कि अगर वे ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो हमें चटगांव, ढाका, मुर्शिदाबाद और कासिम बाजारदे दें। और बर्मा में शामिल कर दे।  

                    अंग्रेज अब पिंडारिस और मराठों से निपट चुके थे और बर्मा की सीमा को कम करने की तलाश में थे। 24 फरवरी 1824 को, एम्हेर्स्ट ने बर्मा के साथ युद्ध की घोषणा की। बर्मा में युद्ध ब्रिटिश के लिए मुश्किल साबित हुआ।

                      आर्द्रता और मलेरिया ने सैनिकों को कमजोर कर दिया। समुद्र मार्ग सेआई ब्रिटिश सेना ने रंगून जीता, लेकिन बरसात के मौसम के दौरान वहां फंसगई।। बर्मी कमांडर ने बंगाल पर हमला करना शुरू कर दिया।

                     बड़ी कठिनाइयों के बाद, अंग्रेजों को असम जीतने में कामयाबी मिली। आखिरकार, 1826 में एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए एक स्थान पर - बर्मा ने असम और मणिपुर को छोड़ दिया और अराकान को अंग्रेजोंको दे दिया।

                     यह युद्ध अंग्रेजों के लिए भारी भूल साबित हुआ।पिंडारियोंस और मराठों को हरा देने में बिताई गई राशि बर्मा के साथ पहले युद्ध की तुलना में 12 गुना ज्यादा थी। इस युद्ध में ब्रिटिश कमांडरों की मूर्खता और लापरवाही के कारणएम्हेर्स्ट को काफी बदनामी का सामना करना पड़ा।

                       एम्हेर्स्ट के समय के दौरान एक और घटना हुई - अंग्रेजों ने भरतपुर के किले पर कब्जा कर लिया। उनका कार्यकाल 1826 में समाप्त कर दिया गया था, क्योंकि एक गवर्नर जनरल जिसने इतनी बड़ी राशि बर्बाद की थी, वह ईस्ट इंडिया कंपनी का पसंदीदा नहीं रह सका।





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