बहादुर शाह ज़फ़र के दरबार में अंग्रेज कैदियों का संहार

बहादुर शाह की अपील पर 139 अंग्रेज कैदी बनाए गए

1857 की विद्रोह की भयावहता: साजिश, कैद और संगठित संहार

            बहादुर शाह जफर के कहने पर 139 अंग्रेज़ों को नज़रबंद कर  दिया गया, लेकिन बागियों को लगातार गद्दारी और जासूसी की ख़बरें मिल रही थीं, और यह बात भी उनसे छिपी नहीं थी कि हकीम अहसनुल्लाह और महबूब अली, अंग्रेजों से मिले हुए थे।

            और यह दोनों सबसे बड़े गद्दार है। उन्हें यह भी पता चला कि इन अंग्रेज़ कैदियों की मदद से मेरठ में अंग्रेजों को पत्र और संदेश भेजे जा रहे थे। यह खबर सुनकर उनका गुस्सा होना स्वाभाविक बात थी। 

सरदारों ने अंग्रेजों के साथ क्या किया?

            अहसनुल्लाह के संस्मरणों में यह बात साबित है कि कुछ क्रांतिकारी सरदारों के हाथ बहुत से कागजात हाथ लगे जिससे अहसनुल्लाह की गद्दारी बिल्कुल यकीनी हो जाती थी अब उसकी गद्दारी शक से यकीन में बदल चुकी थी। 

             इस बात पर वह सख्त गुस्सा हो गए। और सरदारों ने बहादुर शाह जफर के मना करने के बावजूद, उन्होंने महिलाओं और बच्चों समेत सभी अंग्रेजों को काटकर फेंक दिया। यह बहुत सख्त और खराब व्यवहार था क्योंकि बच्चों और औरतों को मारना कैसी भी हालत में जायज नहीं है चाहे कितनी भी जंग की हालत हो।

             कुछ जगहों पर यह कहा गया है कि अहसानुल्लाह ने इन अंग्रेजों को बचाने के लिए पवित्र कुरान और हदीस का हवाला दिया, लेकिन ज़हीर देहलवी द्वारा दास्तान ग़दर में जिसके बयान से पता चलता है कि यह व्यक्ति अपना घर छोड़कर भी नहीं निकला।


किशनगढ़ के महल में क्या हुआ ?

             राजा किशनगढ़ के महल में ठहरे। जो अंग्रेज वहां महल में रह रहे थे, उनको बाहर निकाला गया। बहादुर शाह के युवराज ने उन्हें यह कहकर बचाना चाहा कि 'इनको छोड़ दो, अभी हम इनको हिरासत में रखेंगे', लेकिन सरदारों ने अपना काम तमाम करना बेहतर समझा। संयुक्त मजिस्ट्रेट थियो फेलिक्स मिशकाफ़ अपनी जान बचाकर भाग निकले। 

             जो अंग्रेज अपनी जान बचाने में कामयाब रहे, वे करनाल की ओर भागे, लेकिन उन अंग्रेजों को काफी भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक अंग्रे बताता है कि वह अपने परिवार के साथ भाग रहा था जब लोगों ने उसे घेर लिया और लूट लिया। 

               इस अंग्रेज़ ने अपना सिर ज़मीन पर रख दिया। एक आदमी ने उसके सिर पर अपना पैररखा औरज़मीनन खोदी। उसने अपना पैर उसके सिर पर रखा, और वह उसके धड़ से अलग होने ही वाला था कि अंग्रेज़ ने कहा, "मैं इस इरादे से अपना सिर कुर्बान करताहूँ।


अंग्रेजों के साथ गांव में क्या हुआ?     

          कि तुम मेरा सिर लेकर औरतों की बेइज्जती नहीं करोगे।" यह सुनकर लोग उसे छोड़कर चले गए। एकअंग्रेज बताता है कि लोग उसे घसीटकर एक गाँव में ले गए और उससे पूछा, "क्या तुम, फिरंगी, चाहते हो कि हम ईसाई बन जाएँ?" उन्होंने उसके हाथ पीछे बाँध दिए। एक ने कहा, "करीम बख्श, जाओ और अपनी तलवार लाओ, हम इस अंग्रेज का सिर काट देंगे।" 

               करनाल गए कुछ अंग्रेज़ बताते हैं कि कुछ जगहों पर लोग दयालु थे और छोड़ दिया, लेकिन ज़्यादातर जगहों पर अंग्रेजों कीबेइज्जती की जाती थी और उनके साथ इतना बुरा व्यवहार किया जाता था कि कोई उन्हें बैठने तक नहीं देता था और पीने का पानी भी नहीं देताथा; इतने ज़्यादा लोग नाराज़ थे।

              जब ये लोग बलगढ़ पहुँचे, तो रानी मंगला देवी ने उनके लिए व्यवस्था की, लेकिन आम लोगों ने धमकी दे दीकि अगर इन अंग्रेजों को यहां से नहीं निकाला गया, तो हम तुम्हारी ज़मीन छीन लेंगे। इस लिए इनको मजबूरन उस जगह से निकलना पड़ा।

एक यूरोपीयमहिला ने अपनी बुक में लिखा है:

                एक समय था जब अंग्रेज शहर सेगुज़रते थे तो लोग उनकी बड़ी इज्जत करते थे। उनका स्वागत किया जाता था। और फिर ऐसा टाइमआ गया कि हर छोटे से छोटा आदमी भी अंग्रेजों की बेइज्जती करने के बिना रहता नहीं था।

                 जिसकी भी आंखों में देखो खून गिररहा है,। और गुस्से से दांत पिस्तेहैं।। मगर उनकी ज़बान पर से साफ नजर आ रहाथा कि यह बादशाही जो है हिन्दुस्तानी है जो हमारे पूर्वजों से विरासत के रूप में हमेंमिली है। तुम अंग्रेज दूसरे देश केहो; तुम्हारा क्या हक है कि तुम हम पर हुकूमत करो? किस हिसाब से आप हम पर राज कर रहे हो और हमारी संपत्ति और संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया है?"


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